उदयपुर के सज्जनगढ़ बायोलॉजिकल पार्क में पिंजरे से एक दिन पहले भागे लेपर्ड का अब तक कुछ पता नहीं चला है। तो वहीं वनकर्मी पार्क के अंदर ही उसकी तलाश कर रहे है। वन विभाग की इसमें बड़ी लापरवाही सामने आई है।
इस पर विभाग ने मीडिया को कहा की जानवर को एकदम से लाकर शिफ्ट नहीं किया जाता है। रेस्क्यू के बाद हम जानवर को डिस्टर्ब नहीं करते। कैद में आने के बाद वो तनाव में रहता है। इसे लापरवाही नहीं मान सकते है। यह हमारा रूटीन वर्क है।
वहीं टूरिस्ट पर हमले के डर से आज बायोलॉजिकल पार्क बंद है। वन विभाग की इस लापरवाही के बाद मुख्य वन संरक्षक (CCF) एसआरवी मूर्ति ने उप वन संरक्षक (DFO) याघवेंद्र सिंह को लेकर जांच सौंपी है।
पिंजरे से भागे लेपर्ड को शहर से सटे लखावली इलाके की पहाड़ी से मंगलवार शाम करीब 7 बजे यहां लाया गया था। रात में वनकर्मी लेपर्ड को पिंजरे में ही छोड़कर चले गए थे। सुबह आकर देखा तो वह पिंजरे में नहीं था। ऐसे में वनकर्मियों की लापरवाही को नकारा नहीं जा सकता।
सवाल ये भी हैं की क्या पिंजरे टुटा हुआ था? अगर नही तो फिर लेपर्ड पिंजरे से निकला कैसे? घटना के बाद अब इतने घंटे बीतने के बाद पार्क में सर्च ऑपरेशन कहां तक पहुंचा? क्या वाकई में लेपर्ड पार्क की दीवारों को कूद कर बाहर जा सकता हैं?
सिंतबर से उदयपुर के गोगुंदा-झाड़ोल और शहर से सटे इलाकों में लेपर्ड का मूवमेंट बढ़ा है। आदमखोर लेपर्ड कई लोगों की जान ले चुका है। इस कारण उसे मारने का भी आदेश दिया गया था। एक लेपर्ड को मारा भी जा चुका है, हालांकि वो आदमखोर था या नहीं ये कहना मुश्किल है। वहीं पिंजरे में कैद लेपर्ड को सज्जनगढ़ बायोपार्क लाया जा रहा है। अब लखावली से पिंजरे में कैद लेपर्ड के बायोपार्क से भागने और उसे यहां लाकर पिंजरे में शिफ्ट नहीं करने सहित कई लापरवाही सामने आ रही है।
ऐसे और कई सवालों को ध्यान में रखते हुए पहले डीएफओ डी.के तिवारी को फिर गणेश गोठवाल को संपर्क करने की कोशिश को गई लेकिन जहां तिवारी ने कई बार फोन करने के बाद भी फ़ोन नही उठाया तो वहीं, गोठवाल को फोन करने पर भी जवाब नही मिला।
वन विभाग का मानना है की लेपर्ड बायो पार्क के अंदर ही है और वह बाहर नहीं जा सकता है। इसके पीछे विभाग का मानना है की बायो पार्क के चारों तरफ जो सौर ऊर्जा के करंट प्रवाहित होने वाली फेंसिंग लगी है। वहां लेपर्ड नहीं जा सकता है। अगर वह जाने की कोशिश करता है तो उसे करंट का झटका लगता है। विभाग की टीम ने चारों तरफ पूरी फेंसिंग चेक कर ली लेकिन कहीं हमें फेसिंग के टूटा होने का निशान नहीं मिला है। न ही ऐसे कोई पग मार्क बाहर की तरफ दिखे है।
असिस्टेंट वाइल्डलाइफ कंजरवेटर गणेश लाल गोठवाल ने बताया कि दरअसल लेपर्ड एस्केप होने के बाद से लेकर अभी तक उसका कोई पता नहीं लग पाया है, ट्रैप कैमरे भी लगाए गए हैं सर्च ऑपरेशन भी चलाया जा रहा है लेकिन सुबह 6:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक 12 घंटे के भीतर अभी तक उसे जानवर का कोई भी पता नहीं लग पाया है,
गोठवाल ने बताया कि लेपर्ड बायोलॉजिकल पार्क के अंदर भी हो सकता है या फिर पार्क के बाहर भी जा सकता है, पार्क की दीवारें 6 फीट से अधिक ऊंची है लेकिन जानवर फुर्तीला होने के कारण हो सकता है कि पार्क के बाहर चला गया हो, इसके अतिरिक्त दीवारों पर लगाए गए सोलर पैनल के जरिए संचालित करंट के तारों से टच होकर हो सकता है कि वह बाहर उछलकर गिरा हो और उसके बाद आसपास के इलाके में कहीं भाग गया हो।
जंगली जानवर होने की वजह से उसे इलेक्ट्रिक फेंस के बारे में ज्यादा कुछ समझ नहीं है और हो सकता है कि वह फैंस के कांटेक्ट में भी आया हो जिससे वह हल्का करंट लगने के बाद दीवार से उछलकर बाहर गिर गया हो। फिलहाल 80 से ज्यादा वन विभाग के कर्मचारियों की टीम लेपर्ड की तलाश में लगी हुई है।
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