अब वागड़ में मनाई जाएगी कर्क संक्रांति


अब वागड़ में मनाई जाएगी कर्क संक्रांति

संभागीय आयुक्त डॉ.पवन की पहल पर 16 जुलाई को उत्सवी माहौल में मनेगी कर्क संक्रांति

 
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बांसवाड़ा, 25 जून। आदिम कला-संस्कृति और शिल्प वैशिष्ट्य की धरा वागड़ अंचल को अब कर्क रेखा की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति पर होने के तथ्य से गौरवांवित कराने के उद्देश्य से संभागीय आयुक्त डॉ. नीरज के पवन की पहल पर पहली बार 16 जुलाई को उत्सवी माहौल में कर्क संक्रांति का पर्व मनाया जाएगा। इसके लिए प्रशासनिक तैयारियां प्रारंभ कर दी गई हैं। 

संभागीय आयुक्त डॉ.पवन ने बताया कि हमारे लिए यह गौरव का विषय है कि हम इस ब्रह्मांड में एक विशिष्ट भौगोलिक स्थिति पर निवास कर रहे हैं। समूचा भारत मकर संक्रांति मनाता है परंतु कर्क रेखा पर स्थित होने के कारण वागड़वासी मकर संक्रांति के साथ-साथ कर्क संक्रांति भी मनाने जा रहे हैं। इसका प्रमुख उद्देश्य है कि हमारे इस अंचल के गौरवमयी तथ्य को लेकर देश-दुनिया के पर्यटकों को यहां आमंत्रित किया जाए। 

उन्होंने बताया कि इसी उद्देश्य से वागड़ अंचल के दोनों जिलों में कर्क रेखा की अवस्थिति वाले पर्यटन स्थलों पर साइन बोर्ड भी लगाए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि प्रयास किया जा रहा है कि कर्क संक्रांति के आयोजन को पूरा जिला यादगार तरीके से मनाए। इस आयोजन को उत्सवी माहौल में मनाया जाएगा और इसके लिए विविध गतिविधियों की कार्ययोजना तैयार की जा रही है। उन्होंने जिलेवासियों से आह्वान किया है इस आयोजन में अपनी सक्रिय सहभागिता दें और प्रयास करें कि यह आयोजन प्रतिवर्ष उसी उत्साह के साथ मनाया जाए।

संभागीय आयुक्त ने बैठक लेकर दिए निर्देश :

इधर, कर्क संक्रांति पर्व के लिए प्रशासन द्वारा भी तैयारियां आरंभ कर दी गई हैं। मंगलवार को इस संबंध में  की संभागीय आयुक्त डॉ. नीरज के.पवन की अध्यक्षता में एक बैठक का आयोजन किया गया जिसमें आयोजन की रूपरेखा तय करते हुए संबंधित विभागीय अधिकारियों को इस आयोजन की तैयारियों के लिए दायित्व सौंपे हैं। उन्होंने समस्त संबंधित अधिकारियों को पूर्ण समन्वय स्थापित करते हुए आयोजन की कार्ययोजना तैयार करने और इसे सफल बनाने के लिए तैयारियां आरंभ करने के निर्देश दिए। डॉ.पवन ने कहा कि इस पर्व को महोत्सव के रूप में मनाया जाए और अधिकाधिक जनसहभागिता सुनिश्चित की जावें। उन्होंने जिला कलक्टर सहित संबंधित विभागीय अधिकारियों को इस संबंध में अनुपालना रिपोर्ट प्रस्तुत करने को भी कहा है। 

बैठक में जिला परिषद सीईओ वृद्धिचंद गर्ग,एडीएम अभिषेक गोयल, तहसीलदार दीपक सांखला, जिला शिक्षा अधिकारी मावजी खांट व शफब अंजुम, डीएसओ हजारीलाल अलौरिया,नगर परिषद आयुक्त मोहम्मद सुहैल, स्काउट सीओ दीपेश शर्मा व अन्य अधिकारी मौजूद रहे।  

कलक्टर ने बनाई समिति, जिला परिषद सीईओ को बनाया अध्यक्ष   

जिला कलक्टर डॉ. इंद्रजीत यादव ने बताया कि कर्क संक्रांति पर्व आयोजन के लिए जिला परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी वृद्धिचंद गर्ग की अध्यक्षता में एक आयोजन समिति का गठन किया गया है। इस समिति में उप वन संरक्षक, एसडीएम बांसवाड़ा, केवीके बोरवट के संभागीय निदेशक, पीडब्ल्यूडी के एसई, नगरपरिषद बांसवाड़ा के आयुक्त, मुख्य जिला शिक्षा अधिकारी, स्काउट सीओ, पर्यटन अधिकारी और समस्त विकास अधिकारियों को सदस्य नियुक्त किया गया है। उन्होंने समिति सदस्यों को कर्क रेखा पर स्थित पर्यटन स्थलों पर बोर्ड लगवाने और कर्क संक्रांति के सफल आयोजन के लिए तैयारियां पूर्ण करने के निर्देश भी दिए हैं। 

यह होती है कर्क संक्रांति :

वागड़ अंचल के ख्यातनाम ज्योतिषाचार्य महर्षि यादवेंद्र द्विवेदी ने बताया कि सूर्य के कर्क राशि में प्रवेश को कर्क संक्रांति कहते हैं। हिंदू कैलेंडर के अनुसार इसे छह महीने के उत्तरायण काल का अंत भी माना जाता है क्योंकि सूर्य 6 महीने के लिए उत्तरायण और 6 महीने के लिए दक्षिणायन में रहते हैं। कर्क संक्रांति से दक्षिणायन की शुरुआत होती है। विशेष बात है कि यह निरयण कर्क संक्रांति है। सायन कर्क संक्रांति 21 जून को (लगभग) प्रति वर्ष अस्तित्व में आती है। वहाँ से दिनमान व ऋतु में बदलाव होने लगता है। उन्होंने बताया कि कर्क संक्रांति इस वर्ष 16 जुलाई मंगलवार को है। इस दिन सुबह 11.17 मिनट पर सूर्य मिथुन राशि से निकलकर कर्क राशि में गोचर करने वाले हैं। इसलिए इस तिथि को कर्क संक्रांति कहा जा रहा है। उन्होंने यह भी बताया कि सूर्य सभी 12 राशियों में( पृथ्वी का 360 डिग्री में परिभ्रमण )  प्रवेश करते हैं, इस तरह साल में कुल 12 संक्रांतियाँ होती हैं। जैसे मेष संक्रांति 0 से 30अंश तक व अंतिम मीन संक्रांति 330से 360 अंश तक। इनमें मकर और कर्क संक्रांति का विशेष महत्व है। कर्क संक्रांति पर पूजा-पाठ, जप-तप और दान आदि करना विशेष फलदायी माना जाता है। यह  एक मान्यता साथ ही इस दिन की गई पूजा-पाठ से सभी दोष दूर होते हैं और ग्रह-नक्षत्रों का शुभ फल प्राप्त होता है।

उत्तरायण से दक्षिणायन की ओर

भीलूड़ा निवासी डॉ. द्विवेदी के अनुसार कर्क संक्रांति को उत्तरायण काल का अंत माना जाता है क्योंकि सूर्य 6 महीने के लिए उत्तरायण और 6 महीने के लिए दक्षिणायन में रहते हैं। कर्क संक्रांति से दक्षिणायन की शुरुआत होती है, जो मकर संक्रांति तक चलती है। दक्षिणायन के समय रातें धीरे धीरे लंबी होना शुरू हो जाती हैं और दिन छोटे होने लग जाते हैं। इस दौरान वर्षा, शरद, हेमंत ये तीन ऋतुएं आती हैं। सूर्य जब मकर से मिथुन राशि अंत तक भ्रमण करते हैं, तब उस अंतराल को उत्तरायण कहते हैं और जब सूर्य कर्क से धनु राशि अंत तक भ्रमण करते हैं, तब उसे दक्षिणायन कहते हैं।
 
कर्क संक्रांति का महत्व 

द्विवेदी बताते हैं कि कर्क संक्रांति से मानसून की शुरुआत हो जाती है और चारों तरफ हरियाली बनी रहती है। दक्षिणायन के चार महिनों में कोई भी मांगलिक कार्यक्रम नहीं किया जाता और इस दौरान भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। मान्यता है कि कर्क संक्रांति के दिन सूर्यदेव की पूजा करने से सभी रोग व दोष दूर होते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि का वास होता है। कर्क संक्रांति पर आदित्य हृदय स्तोत्र, सूर्य चालीसा और सूर्य मंत्रों का जप करना चाहिए। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान व दान करने से जीवन में कभी किसी चीज की कमी नहीं रहती।विशेषकर पितरों के नाम का दान करने से पितर आशीर्वाद देते हैं, जिससे परिवार में प्रेम बना रहता है।यह मान्यता लोकाचार व शास्त्राधारित है। सैद्धांतिक खगोल ज्योतिर्विज्ञान से पृथ्वी की वार्षिक परिभ्रमण 360अंश व उनके 12 बारह मेषादि मीन तक 12 मार्ग 30 गुणा 12 बराबर 360 डिग्री हैं। प्रथम 0 से 180 अंश तक कन्या संक्रांति अंत व उपरांत से 360 अंश तुला से मीन  राशियाँ  जानी जाती है

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