ट्रिपल तलाक के एक फैसले में मद्रास हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया है कि शरीयत काउंसिल तलाक का प्रमाणपत्र जारी करने व जुमरना लगाने का अधिकार नहीं रखती है। तलाक पर कानूनी मुहर लगाने के संबंध में केवल राज्य द्वारा गठित अदालतें ही निर्णय दे सकती हैं।
मद्रास हाई कोर्ट ने कहा है कि शरीयत काउंसिल कोई अदालत नहीं बल्कि एक निजी निकाय है जो कि पारिवारिक और वित्तीय मुद्दों को सुलझाने में मदद कर सकता है, लेकिन यह तलाक के प्रमाण पत्र जारी नहीं कर सकता है या दंड लागू नहीं कर सकता है।
मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति जीआर स्वामीनाथन ने जिला और सत्र न्यायाधीश द्वारा पत्नी को मुआवजे की पुष्टि करने के आदेश के खिलाफ एक मुस्लिम पति द्वारा दायर दीवानी पुनरीक्षण याचिका पर सुनवाई करते हुए ये टिप्पणियां कीं।
आपको बता दे की इस जोड़े ने 2010 में इस्लामी रीति-रिवाजों के अनुसार शादी की थी। 2017 में पति ने दावा किया कि उसने अपनी पत्नी को तीन तलाक का आदेश जारी किया था और फिर किसी और से दूसरी शादी कर ली थी। हालांकि, पत्नी ने इस बात से इनकार किया कि उसे तीन तलाक़ का नोटिस मिला है और दावा किया कि उनकी शादी अभी भी कायम है।
पीड़ित महिला ने 2018 में, उसने घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम की धारा 12(1) और (2), 18(ए) और (बी), 19(ए), (बी), (सी), और 20(1) (डी) और 22 के तहत तिरुनेलवेली न्यायिक मजिस्ट्रेट कोर्ट में घरेलू हिंसा की शिकायत दर्ज कराई। 2021 में, मजिस्ट्रेट ने पति को घरेलू हिंसा के आरोपों पर पत्नी को मुआवजे के रूप में 5 लाख रुपये और उनके नाबालिग बच्चे के भरण-पोषण के लिए 25,000 रुपये प्रति माह देने का निर्देश दिया।
पति ने जिला और सत्र न्यायालय में आदेश को चुनौती देते हुए दावा किया कि उसने कानून के अनुसार तीन तलाक़ जारी करके पहली शादी को भंग करने के बाद दूसरी शादी की है। सत्र न्यायालय ने याचिका खारिज कर दी।
न्यायमूर्ति स्वामीनाथन ने याचिकाकर्ता से कहा “तलाक में इस प्रकार एक निश्चित प्रक्रिया शामिल है। चीजों की प्रकृति के अनुसार, सख्त अनुपालन पर जोर दिया जाना चाहिए। यदि पति दावा करता है कि उसने तीन बार तलाक बोलकर पहली पत्नी को तलाक दे दिया है और पत्नी इस पर विवाद करती है, तो सवाल उठता है कि क्या विवाह वैध रूप से भंग हुआ है। इस मुद्दे को पति के एकतरफा निर्णय पर नहीं छोड़ा जा सकता। ऐसा करने से पति खुद ही अपने मामले का न्यायाधीश बन जाएगा।
न्यायाधीश ने तमिलनाडु की तौहीद जमात नामक शरीयत काउंसिल द्वारा जारी तलाक प्रमाण पत्र को चौंकाने वाला पाया क्योंकि इसमें तलाक में सहयोग न करने के लिए पत्नी को दोषी ठहराया गया था। उच्च न्यायालय ने कहा कि यह प्रमाण पत्र कानूनी रूप से वैध नहीं है क्योंकि निर्णय केवल राज्य द्वारा विधिवत गठित न्यायालय द्वारा ही दिया जा सकता है।
न्यायमूर्ति स्वामीनाथन ने कहा “यदि कोई हिंदू, ईसाई, पारसी या यहूदी पति पहली शादी के रहते हुए दूसरी शादी करता है, तो यह क्रूरता के साथ-साथ द्विविवाह का अपराध भी होगा। यह स्पष्ट रूप से घरेलू हिंसा का कृत्य माना जाएगा, जिससे पत्नी को घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम, 2005 की धारा 12 के तहत मुआवजे का दावा करने का अधिकार मिलेगा। क्या यह प्रस्ताव मुसलमानों के मामले में लागू होगा? इसका जवाब हां है”
उन्होंने कहा कि जबकि एक मुस्लिम व्यक्ति कानूनी रूप से चार शादियां करने का हकदार है, उसकी पहली पत्नी को भरण-पोषण मांगने का अधिकार है।
Source: Media Reports
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