उदयपुर 26 फ़रवरी 2024। मांजी के मंदिर पर 23 फरवरी की रात.9.30 बजे पर्यटकों द्वारा शराब की पार्टी का सेवन कर पार्टी की जा रही थी, मांजी के मंदिर संघर्ष समिति सनातन भक्तो को सुचना मिलने पर रोहित चौबीसा और कुंदन कुमावत मौके पहुंचे और देखने पर पाया की शराब का सेवन पार्टी की जा रही है, उसी समय देवस्थान द्वारा तैनात सुरक्षा गार्ड और अंबामाता थाना बीट अधिकारी जयपाल को सुचित किया तो वह आए और पर्यटक को समझाया की यह मंदिर है। फिर पर्यटक ने माफी मांगी और वह चले गए।
मांजी मंदिर संघर्ष समिति के सहसंयोजक रोहित चौबीसा ने बताया कि देवस्थान अधिकारी व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए मंदिर को धार्मिक तीर्थ स्थल न बना कर पर्यटन स्थल बना कर मंदिर मंदिर मर्यादा और पवित्रता को भंग कर रहा है। मंदिर आस्था का केंद्र है, देवस्थान विभाग अधिकारी को मंदिरो में धार्मिक आयोजन कर सनातन भक्तो को जागरूक कर अयोध्या धाम जैसा बनाना चाहिए, अधिकारी अपने विभाग के मूल उद्देश से भटक गए है।
उन्होने बताया कि माजी के मंदिर पर ठेका प्रणाली चालू करने के लिए उच्च अधिकारियों को आय दिखाकर गुमराह कर ठेका प्रणाली चालू कर दी। विभाग ने आय तो कमा ली लेकिन हमारी सनातन संस्कृति को धीरे धीरे खत्म करने का काम कर रहे है।
संघर्ष समिति द्वारा 15 माह से ज्ञापन देने, विरोध करने पर भी कोई कार्यवाही नही कर रहे है और उल्टा उच्च अधिकारी,राजनीतिक नेता, मंत्री को गलत रिपोर्ट देकर गुमराह कर देते है। उच्च अधिकारी, राजनीतिज्ञ इनकी बात सुनकर जमीनी स्तर पर क्या चल रहा है इसकी जांच भी नही करते है। मांजी के मंदिर धार्मिक मुद्दा है, सनातन भक्त की आस्था का विषय है लेकिन देवस्थान अधिकारी ने इसको राजनीतिक विषय बना कर मंदिर मर्यादा और पवित्रता को भंग करने में सफल हो रहे है।
संघर्ष समिति ने बताया कि यदि विभाग मंदिर को मंदिर बना देगा तो कोई भी गलत कार्य नहीं होगे लेकिन विभाग ने सभी को गुमराह कर रखा है। उन्होने सवाल उठाया कि क्या मंदिर से होने वाली आय सनातन संस्कृति से बढ़कर है ? टेंडर की मुख्य शर्त लाइट बिल और सुरक्षा ठेकेदार द्वारा होनी चाहिए लेकिन मंदिर पर लाइट बिल यूआईटी द्वारा और सुक्षा पर खर्च प्रतिमाह 60000/ रुपए देवस्थान द्वारा ऐसा क्यू? देवस्थान अधिकारी को मंदिर को धार्मिक तीर्थ स्थल अयोध्या धाम जैसा बनाना चाहिए न की पर्यटन केंद्र बना कर मंदिर मर्यादा और पवित्रता को भंग करना चाहिए, मांजी के मंदिर को ऐसा करने का अधिकार उनको किसने दिए? मंदिर आस्था का केंद है ।
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