वीरों की धरा मेवाड़ में अब टाइगर की दहाड़ कुछ ही महीनों में सुनने को मिलेगी। रोमांचित करने वाली यह खुशखबरी यहां के पर्यटन विकास में मील का पत्थर साबित होगी। वहीं, मेवाड़ में भी रोजगार का इजाफा होगा।
मेवाड़ के जंगलों में पांच दशक तक पहले बाघों की दहाड़ सुनाई देती थी। लेकिन, बढ़ती जनसंख्या के दबाव में 1960 से 1970 के बीच बाघों को मेवाड़ से लगभग समाप्त कर दिया। यह जीवित विरासत हमसे छिन गई। हालांकि, बाघ समाप्त हो गए, लेकिन अब भी राजस्थान में सर्वश्रेष्ठ वन हमारे पास हैं। इनमें टॉडगढ़-रावली, भैंसरोडगढ़, बस्सी, जयसमंद, सीतामाता, सज्जनगढ़, फुलवारी की नाल, कुम्भलगढ़ अभ्यारण्य क्षेत्र शामिल हैं।
अब राष्ट्रीय बाघ परियोजना (NTCA) की ओर से कुभलगढ़ टाइगर रिजर्व को सैद्धांतिक मंजूरी मिलने के बाद एक बार फिर यह उमीद जगी है कि ये जंगल फिर बाघों के पनाहगाह बनेंगे। यह Tiger Reserve 4 जिलों उदयपुर, पाली, राजसमंद, सिरोही में फैला होगा।
हालांकि राज्य सरकार की ओर से धीमी गति से चल रही प्रक्रिया के कारण इसके मूर्त रूप लेने की मियाद लबी होती जा रही है। एनटीसीए की सैद्धांतिक सहमति मिले करीब नौ माह गुजर चुके हैं। अब राज्य सरकार की ओर से विशेषज्ञ समिति का गठन होना है। इसकी अंतिम रिपोर्ट के बाद राज्य सरकार की ओर से ही कुभलगढ़ टाइगर रिजर्व (Kumbhalgarh Tiger Reserve) की अधिसूचना जारी होगी। लेकिन एनटीसीए की सहमति के बाद पहले विधानसभा और फिर लोकसभा चुनाव के चलते इस प्रक्रिया में विलब हो रहा है। माना जा रहा है कि 4 जून को लोकसभा चुनाव की आचार संहिता समाप्त होने के बाद राज्य सरकार इस दिशा में आगे कदम बढ़ा सकती है।
निम्न बातों का रखना होगा ध्यान
राष्ट्रीय बाघ संरक्षण के सदस्य, राहुल भटनागर ने कहा की कुभलगढ़ में आवास की बनावट, पानी की उपलब्धता, बाघिनों के लिए पर्याप्त प्रसव स्थल और लोगों का बाघों के साथ पुराना रिश्ता ऐसे कारक हैं, जो यहां बाघ लाने के लिए सकारात्मक माहौल बनाते हैं। यहां पर्यटकों की कोई कमी नहीं रहेगी। होटल, गाइड, वाहन संचालक, संरक्षण के क्षेत्र में कार्यरत स्वयंसेवी संस्थाएं, छोटे दुकानदार, होम स्टे से जुड़े स्थानीय लोग आदि इससे लाभान्वित होंगे। यदि बाघ की वापसी होती है तो यह एक बड़ा कार्य होगा। राज्य सरकार को इसमें तेजी दिखानी चाहिए।
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