कल देर रात और आज सुबह सोशल मीडिया पर वायरल हुई खबर के मुताबिक उदयपुर के जीबीएच अमेरिकन हॉस्पिटल में कल एक मरीज़ की मौत को लेकर परिजनों ने हंगामा खड़ा कर दिया। परिजनों का आरोप है की मरीज़ की मौत अस्पताल की लापरवाही से हुई है। जबकि अस्पताल प्रशासन का कहना है की उन्होंने मरीज़ के इलाज में कोई लापरवाही नहीं बरती है। हालाँकि इस घटना को लेकर परिजनों की ओर से न तो कोई मुकदम दर्ज करवाया गया है न ही मृतक का पोस्टमार्टम करवाया गया। ऐसे में अस्पताल प्रशासन का कहना है की यदि उन्होंने इलाज में कोई कोताही बरती है तो परिजन मृतक का पोस्टमार्टम करवाने के लिए स्वतंत्र थे।
उक्त खबर की तफ्तीश करते हुए पता चला की दरअसल गत 9 फ़रवरी को बांसवाड़ा जिले के साबला क्षेत्र निवासी जितेंद्र सिंह चुण्डावत को दुर्घटना में घायल होने के बाद परिजनों ने उदयपुर स्थित जीबीएच अमेरिकन हॉस्पिटल में भर्ती करवाया था। जहाँ मरीज़ के भर्ती फॉर्म के अनुसार सर, पैर और अन्य जगह पर गंभीर चोट पाई गई थी।
परिजनो के अनुसार अस्पताल के डॉक्टर्स ने सिर्फ पैर का इलाज किया और हेड इंजरी को नज़रअंदाज़ कर दिया गया और रोगी को गंभीर हालात में पहुंचा दिया। परिजनों ने यह भी आरोप लगाया की मरीज़ को चार दिन तक वेंटिलेटर पर रखने के बाद जब परिजनो ने अहमदाबाद ले जाने का फैसला किया तो अस्पताल प्रशासन ने मरीज़ के मृत होने की सूचना दी। इस पर मरीज़ के परिजन भड़क गए और हंगामा खड़ा कर दिया।
वहीँ अस्पताल प्रशासन ने बताया की मरीज़ को पॉलीट्रोमा यानि हेड इंजरी के साथ शरीर में मल्टिपल इंजरी हो गई थी। ऐसे में अस्पताल प्रशासन ने मरीज़ की हालात के मद्देनज़र विशेषज्ञ डॉक्टर्स द्वारा उसका उचित इलाज शुरू किया अस्पताल प्रशासन ने मरीज़ के परिजनों के इस आरोप को भी ख़ारिज किया की मरीज़ की मौत होने के बाद भी उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया।
उदयपुर टाइम्स से बातचीत में जीबीएच अमेरिकन अस्पताल के डॉ निखिल सिंघवी ने बताया की किसी भी मरीज़ की मौत होने के बाद उन्हें चार दिन तक वेंटिलेटर पर नहीं रखा जा सकता। डॉ निखिल सिंघवी के अनुसार जब मरीज़ वेंटिलेटर पर था उस वक्त की पलपल की जानकरी मरीज़ के परिजनों को दी गई थी और समस्त डेली रिपोर्ट पर मरीज़ क्र परिजनों की सहमति के हस्ताक्षर उनके पास मौजूद है।
क्या सच है क्या झूठ ? इसका फैसला यदि मृतक का पोस्टमार्टम किया जाता तो मामले का खुलासा हो सकता था। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बाद ही परिजनो के लगाए आरोप साबित हो पाते या अस्पताल प्रशासन की सफाई की हकीकत सामने आ पाती। वहीँ परिजनों ने न तो पुलिस में कोई मामला दर्ज करवाया और न हीं कोई मुक़दमा दायर किया।
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