उदयपुर 23 सितंबर 2024। चित्रकला के क्षेत्र में अपनी विशिष्ट पहचान रखने वाले उदयपुर के चित्रकार डॉ. चिमन डांगी 23 सितम्बर से 15 अक्टूबर तक नार्वे देश के होस्ताया आईसलैण्ड में बन रहे ऑपन म्यूजियम के लिए इंस्टॉलेशन आर्ट स्थापित करेंगे। डांगी महीने भर रहकर वहां के स्थानीय पत्थरों पर कार्विंग कर आर्ट वर्क तैयार करेंगे जो वही ओपन आर्ट गैलेरी में प्रदर्शित रहेगा। डांगी का इंस्टॉलेशन वर्क राजस्थान के खेजड़ली गांव में घटित घटना पर आधारित है जिसको वे अपने प्रोजेक्ट ‘डिवाईन विजन‘ से स्थापित करेंगे। इसके बाद डांगी इटली व स्विट्जरलैण्ड में भी यूनिर्वसिटी में कला वार्ता करेंगे।
‘खेजड़ी द ट्री‘
डांगी पहले भी फ्रांस में खेजड़ली गांव की घटना को ‘खेजड़ी द ट्री‘ प्रोजेक्ट से प्रदर्शित कर चुके है। डांगी वर्तमान में ‘एनवायरमेंट आर्ट‘ पर अपने प्रोजेक्ट कर रहे है। चिमन इससे पहले उनकी पेंटिंग सीरिज ब्लू सिटी को भी कई देशों में प्रदर्शित कर चुके है। डांगी न्यूजीलैण्ड, फ्रांस, इटली, जर्मनी, सिंगापुर आदि देशों में कला प्रदर्शनी कर चुके है।
मिसाल है खेजड़ी की कहानी : पेड़ बचाने के लिए 363 लोगों ने दी थी कुर्बानी
18वीं शताब्दी में राजस्थान के मारवाड़ रियासत में राजा अभयसिंह का राज था। उस समय मेहरानगढ़ किले में फूलमहल निर्माण के लिए लकड़ियों की जरूरत पड़ी तो राजा ने अपने मंत्री को लकड़ियों की व्यवस्था करने को कहा। खेजड़ली गांव में अमृता देवी ने इसका विरोध किया और पेड़ से लिपटकर खड़ी हो गई। राजा के कारिन्दों ने उसे तलवार से मार दिया। इसके बाद अमृता देवी की तीन पुत्रियों ने भी पेड़ो को बचाने के लिए बलिदान दिया। अमृता देवी व उनकी पुत्रियों के शहीद होने का समाचार जब आस-पास के गांवों में फैला तो बड़ी संख्या में लोग इकट्ठा हो गए और पेड़ों से लिपटकर खड़े हो गए। राजा के कारिन्दों ने सभी को मौत के घाट उतार दिया। इतनी बड़ी संख्या में जब लोगों के मारे जाने की जानकारी राजा अभयसिंह तक पहुंची तो उन्होंने तुरंत सभी को वापस लौटने का आदेश दिया। इसके बाद महाराजा ने लिखित आदेश दिया की मारवाड़ में कभी खेजड़ी के पेड़ को नही काटा जाएगा। तब से लेकर आज तक भादवा सुदम दशमी को खेजड़ली गांव में मेला भरता है। यहां हजारों श्रद्धालु बलिदानियों को नमन करने पहुंचते है।
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