उदयपुर। संप्रति संस्थान द्वारा हास्य कवि डाड़मचंद ‘डाड़म’ लिखित पांच पुस्तकों का लोकार्पण किया गया। समारोह की अध्यक्षता लोकसंस्कृतिविज्ञ् डॉ. महेन्द्र भानावत ने की। मुख्य अतिथि युगधारा के संस्थापक डॉ. ज्योतिपुज थे।
प्रारंभ में कवि डाड़मचंद ‘डाड़म’ ने अपने स्वागत संबोधन में कहा कि पिछले चार दशक से कविमंचों पर कविता पाठ करते महसूस हुआ कि जो कविताएं सर्वाधिक जनप्रिय बनीं उनका प्रकाशन किया जाना चाहिए। फलस्वरूप डाड़म रो डंको, डाड़म रो रस, डाड़म री लेणा, जैन कथा काव्य तथा मेवाड़ी रेप सांग का लोकार्पण हुआ। इस मौके पर कवि डाड़म ने काव्य पाठ भी किया।
अध्यक्ष डॉ. भानावत ने कहा कि डाड़मचंद की कविताओं में युगबोध की विषमताओं, रूढिय़ों तथा आडम्बरों का सचोट अनुरंजन है। कवि डाड़म जब मंचों पर आते हैं तो हास्य की बत्तीसी के माध्यम से श्रोताओं को रसभौर किये रहते हैं। उनका हास्य न तो पत्नीवाद के प्रवर्तक गोपालप्रसाद व्यास की तरह है और न ही काका हाथरसी की तरह अपितु चौपाल पर बैठे आमजनों के बतरस से उपजी अगजग की अनेक गपशप से उपजा ताजगी देता कडक़ा है।
मुख्य अतिथि डॉ. ज्योतिपुंज ने कहा कि सृजन का सुख क्या होता है, यह शब्दों में बांधना मुश्किल है। सृजन भी ऐसा हो जो लोक के दुखदर्द पर पर्दा डालकर व्यक्ति को हंसने-हंसाने का मौका दे तो क्या कहने? कवि डाड़मचंद ‘डाड़म’ नैसर्गिक रूप से हंसने-हंसाने का हुनर अपने शब्दों-भावों तथा अभिव्यक्ति में बिखेरते आये हैं। मैं लगभग 40 वर्षों से उनके हास्य को पकाने और परोसने के हूनर से चिर परिचित हूं।
उल्लेखनीय है कि कवि डाड़म की पूर्व कृति ‘डाड़म रा दाणा’ व जारी कैसेट ‘डाड़म के दाने लगे हंसाने’ खूब लोकप्रिय रही है। समारोह का संचालन कवि कमलेश जैन ने तथा धन्यवाद की रस्म युगान जैन ने अदा की। इस अवसर पर कवि परिवार के सरोज जैन, पल जैन तथा लाक्शीन जैन भी उपस्थित थे।
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