पर्यटन नगरी उदयपुर सिर्फ अपनी झीलों के लिए ही नहीं बल्कि प्राचीन सभ्यता की पहचान लिए कई इमारतों का गवाह रहा है। आहाड़ सभ्यता से लेकर उदयपुर के घाटों पर बने मंदिर न सिर्फ मेवाड़ धरोहर की पहचान है बल्कि पर्यटकों के लिए भी मुख्य आकर्षण का केंद्र है। इनमें सब से प्रमुख है उदयपुर के घंटाघर से सिटी पैलेस रोड के बीच अत्यंत महत्वपूर्ण द्वारकाधीश मंदिर जिन्हे "जगदीश मंदिर" के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर में स्थानीय ही नहीं बल्कि बड़ी संख्या में पर्यटकों की आवाजाही बनी रहती है।
महाराणा जगत सिंह के समय इसका निर्माण किया गया था। मुगलकाल में औरंगज़ेब के समय इस मंदिर को नुकसान पहुंचा था। बाद में महाराणा संग्राम सिंह ने इसका पुनरोद्धार किया था। तब से यह मंदिर उदयपुर और मेवाड़ के धरोहर की पहचान बना हुआ है। लेकिन कुछ समय से फिर यह मंदिर दुर्दशा का शिकार होने लगा है। जहां मंदिर के बुर्ज (गुम्बद) में जगह-जगह पीपल के खूंटे उग आये हैं, वहीँ मंदिर के कई हिस्सों में पानी का रिसाव भी हो रहा है और पत्थर भी गिर रहे है । वर्तमान में इस मंदिर के रखरखाव की ज़िम्मेदारी देवस्थान विभाग की है। मंदिर के मुख्य पुजारी ने उदयपुर टाइम्स सा बात करते हुए बताया कि देवस्थान विभाग इस धरोहर को लेकर उदासीन है और अनुत्तार्दाई बना हुआ है।
"अधिकारी यहां आकर देखते तक नहीं है कि मंदिर में किस तरह की परेशानी हो रही है। आखिर देवस्थान विभाग का इतना पैसा जाता कहा है? हमारी गुज़ारिश है कि देवस्थान विभाग को एक कमेटी बनाए मंदिर की जल्द-जल्द से मरम्मत करवाएं। यदि विभाग इस जिम्मेदारी से पिछे हटता है तो हम प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर आगाह करेंगे।" - श्री हुकुम राज, पुजारी, जगदीश मंदिर
उदयपुर टाइम्स की टीम ने मंदिर में जाकर जायज़ा लिया और मंदिर के पुजारी पंडित हुकुम राज जी से बातचीत की जिसमे पंडित जी ने बताया की उन्होंने इस सम्बन्ध में कई बार देवस्थान विभाग में शिकायत की लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। पुजारी जी ने बताया की विभाग के अधिकारी कभी यहाँ झांकते भी नहीं है, कोरोना काल में तो और भी बुरे हाल हो गए जब भगवान के द्वार बंद हो गए तब भी किसी ने सुध नहीं ली।
उन्होंने बताया मंदिर के बुर्ज में पीपल के छोटे-छोटे पौधे उग आए हैं। बारिश के दौरान मंदिर में पानी जमा हो जाता है। अधिकारियों की ओर से किसी भी तरह की मरम्मत नहीं होने से मंदिर धीरे-धीरे क्षतिग्रस्त हो रहा है। तीन सौ साल से भी ज़्यादा पुराने इस मंदिर में रख रखाव कि कमी और अब पानी जमने के कारण मंदिर परिसर के भीतर संरचनाओं के पत्थर भी गिरते रहते हैं।ऐसे में यदि किसी पर्यटक को चोट लग जाती है या जीवन कि हानि हो जाती है तो इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा?
पुजारी जी ने कहा कि उनकी तरफ से देवस्थान को शिकायत कि गयी है, मगर बात अनसुनी कर दी जाती है। उनका कहना है कि देवस्थान के अधिकारी केवल अपना रोज़मर्रा का काम कर रहे है एवं केवल नाम मात्र के अधिकारी है।
इस मंदिर को लेकर 21 दिसम्बर को मेवाड़ के राजपरिवार के वंशज महाराणा महेंद्र सिंह के पुत्र महाराज कुमार विश्वराज सिंह ने देवस्थान विभाग के अधिकारियो समेत राजस्थान सरकार के देवस्थान मंत्रालय को पत्र लिखकर आगाह किया है। पत्र में महाराज कुमार विश्वराज सिंह ने राज्य सरकार के देवस्थान मंत्री शकुंतला रावत और उदयपुर देवस्थान आयुक्त करन सिंह को स्थिति से अवगत कराते हुए तुरंत उचित सुधारात्मक कार्रवाई करने का अनुरोध किया है।
शहर, प्रदेश, और देश कि धरोहर ही देवस्थान मंत्रालय और विभाग कि ज़िम्मेदारी है और यदि इसका रखरखाव नहीं किया गया तो यह प्राचीन और गौरवशाली मंदिर दुर्दशा का शिकार हो जायेगा।
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