सांसद मन्नालाल रावत की बयानबाज़ी के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई की मांग तेज़


सांसद मन्नालाल रावत की बयानबाज़ी के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई की मांग तेज़ 

आदिवासी समाज में रोष
 
mannalal rawat

डूंगरपुर 7 अप्रैल 2025। उदयपुर के सांसद मन्नालाल रावत एक बार फिर विवादों में घिर गए हैं। 1 अप्रैल 2025 को उन्होंने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर बाप पार्टी और बांसवाड़ा-डूंगरपुर सांसद राजकुमार रोत पर गंभीर आरोप लगाते हुए विवादास्पद व अमर्यादित भाषा का प्रयोग किया। इस बयान के बाद क्षेत्रीय राजनीति में भूचाल आ गया है।

सांसद रावत द्वारा एक वर्ष पुरानी मशाल जुलूस की तस्वीर को शेयर कर उसमें ISI से तार जुड़े होने जैसे संगीन आरोप लगाए गए। यह जुलूस मणिपुर में आदिवासी महिलाओं के साथ हुए जघन्य अपराधों के खिलाफ मानवतावादी दृष्टिकोण से निकाला गया था। सांसद राजकुमार रोत द्वारा इस प्रकार के आंदोलन में भाग लेना उनका संवैधानिक अधिकार था, जिसे लेकर मन्नालाल रावत की टिप्पणी को जानबूझकर किया गया मानहानिकारक और उकसाने वाला कृत्य बताया जा रहा है।

उन्होंने बताया कि मन्नालाल रावत पर पहले भी अनुसूचित क्षेत्र में अशांति फैलाने के कई आरोप लग चुके हैं। उनके कुछ विवादित बयानों में शामिल हैं।  

झाड़ोल-कोटड़ा क्षेत्र में आदिवासियों की मौत पर रावत ने सोशल मीडिया पर दावा किया कि "ये पैंथर बाप पार्टी व सांसद रोत द्वारा छोड़े गए हैं", जिससे समाज में भय और अराजकता फैली।

एक वायरल ऑडियो में रावत अपने कार्यकर्ताओं को आदिवासियों के घर जलाने और मारपीट के लिए उकसाते पाए गए।

जयपाल सिंह मुंडा पर टिप्पणी: देश के महान आदिवासी नेता जयपाल सिंह मुंडा की जयंती पर उन्हें "झारखंडी ईसाई और देशविरोधी ताकतों का प्रतीक" बताया गया।

9 अगस्त को आदिवासी दिवस मनाने वालों को "नवअगस्तिये और नक्सली" कहकर अपमानित किया। इन सभी घटनाओं के प्रमाण संबंधित संगठनों द्वारा प्रस्तुत किए जा चुके हैं।

आदिवासी संगठनों व बाप पार्टी के पदाधिकारियों ने मन्नालाल रावत के विरुद्ध सख्त कानूनी कार्रवाई की मांग की है। उनका कहना है कि रावत बार-बार आदिवासी समाज की छवि धूमिल कर उन्हें भड़काने का प्रयास करते हैं, जो लोकतांत्रिक और संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ है।

इस मामले में प्रशासन से हस्तक्षेप की मांग करते हुए संबंधित संगठनों ने रावत पर मानहानि, नफरत फैलाने और सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने की धाराओं में मुकदमा दर्ज करने की मांग की है। अब देखना यह है कि क्या सरकार और निर्वाचन आयोग इस मामले को गंभीरता से लेकर कोई ठोस कार्रवाई करते हैं या यह मामला भी केवल राजनीति की भेंट चढ़ जाएगा।

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