कर्नाटक चुनाव के नतीजे से उपजे प्रश्न

कर्नाटक चुनाव के नतीजे से उपजे प्रश्न

 
karnataka congress cm

कर्नाटक में नई सरकार बनाने के लिए हुए हालिया चुनाव और उसके नतीजे सामने आने के बाद अनेक प्रकार की कयास आराइयां की जा रही हैं। उनमे से एक जो दिन ब दिन नई ऊँचाई हासिल कर रही हे, वो यह है, कि जब बीजेपी के पूरे प्रचार की बुनियाद मुसलामानों को निशाना बना कर रही थी और अंत में कांग्रेस के घोषणा पत्र में बजरंग दल और आईपीएफ जैसे संस्थानों पर उनके शांति भंग करने पर कड़ी कार्यवाही करने और आवश्यकता पड़ने पर पाबंदी तक लगाने की बात थी, उसका स्वयं प्रधान मंत्री जी ने बजरंग दल को बजरंग बली के समान सम्मान देकर और खुले आम् उनके नाम पर वोट मांगने के बावजूद बीजेपी की हार हो जाना इस बात का संकेत हे कि एक समुदाय विशेष से नफ़रत का जो माहौल पूरे देश में फेलाया जा रहा हे उसका अंत हो गया हैI तो प्रश्न उठता हे कि वास्तव में नफरत का बाज़ार क्या बंद हो गया? क्या मोहब्बत की दुकानें वाकई में खुल गयी हैं?

उत्तर यह हे कि एसा हरगिज़ नहीं हुआ है और न ही निकट भविष्य में होने वाला है। इसके लिए कोई रिसर्च की ज़रुरत नहीं, केवल हमारे गृह मंत्री जी की यह वार्निंग कि यदि कोंग्रेस जीती तो प्रदेश में दंगे शुरू हो जाएंगे काफी हैI इसके साथ साथ मोदी जी के प्रचार के तरीके को भी कम नहीं आंकना चाहिए। तीसरा बीजेपी की मीडिया और सोशल प्लेटफार्म पर तैनात फ़ौज जो इशारों पर राई को पहाड़ बनाने में देरी नहीं करती। चौथा, इसकी अच्छे तरीके से भड़काने वाली कार्यवाही करने वाली सुसज्जित सेना। और अंत में आरएसएस जैसी संस्था जिसकी पहुँच और जिसके कार्यकर्ता गाँव-गाँव और ढाणी-ढाणी में मौजूद हैं।

आरएसएस को अपने सौ वर्षों की कठिन महनत के बाद ऐसी सफलता मिली हे और पिछले दस वर्षों में उसने अपने मिशन के अनेक आयाम प्राप्त कर लिए हैं और अब वक़्त बहुत कम रह गया है क्योंकि मंदिर बन चूका है, अपने टारगेट मुसलमानों और पाकिस्तान को भी जो कुछ करना था, कर लिया हे। अब यहाँ तक पहुँचने के बाद खाली कर्नाटक की इस पिटाई से वो कभी हार मानने वाली नहीं है।

कर्नाटक में अब कांग्रेस की सरकार बन चुकी है, सब प्रकार के जश्न भी हो चुके और अब काम करने की बारी है। संभव हे कि जनता हनीमून का टाइम भी नहीं देने वाली है। दूसरी और अखबारी एवं यूं ट्यूब समाचारों और अटकलों के अनुसार कर्नाटक के पूर्व DGP को सीबीआई का डायरेक्टर बना दिया जाना भी एक फेक्टर समझा जाना चाहिए। अंत में माननीय सुप्रीम कोर्ट कुछ भी फैसला करे केंद्र सरकार के अपने तरीक़े है काम करते रहने के जैसा कि दिल्ली की केजरीवाल सरकार समझती आ रही है। इसलिए सिद्धारमैया जी और कृष्णा जी को अपने सभी पुख्ता तजरुबों का इस्तेमाल करते हुए कांग्रेस के घोषणा पत्र में किए गए वादों को पूरा करना है। 

इनके शासन के हनीमून पीरियड में ही 2024 के लोक सभा चुनावों का प्रचार शरू हो जाएगा और मज़बूत बीजेपी एक मज़बूत नेतृत्व के साथ पहले ही इलेक्शन मोड में है। बजरंग दल सम्बन्धी अंग में बड़ी सावधानी से काम करना चाहिए और दाव में तनिक भी न फंसे तो बेहतर रहेगा।  वेसे भी किसी भी लत्त पर पाबंदी लगाने से सुधार होना वैसे भी सफलता की गारंटी कभी नहीं रही यह दिल और दिमाग़ को सुधारे बिना सफल नहीं हो सकता। प्रयत्न इस दिशा में हो तो अति उत्तम तरीका होगा।

Disclaimer: The views expressed above are of the Author alone and should not be attributed to UdaipurTimes.

To join us on Facebook Click Here and Subscribe to UdaipurTimes Broadcast channels on   GoogleNews |  Telegram |  Signal