उदयपुर 23 नवंबर 2024। मेवाड़ वागड़ की सलूंबर और चौरासी दोनों सीट पर नतीजे आ गए। चौरासी सीट पर BAP ने कब्ज़ा जमाया तो सलूंबर सीट पर आखिरी राउंड में कांटे की टक्कर में बीजेपी विजयी रही। कांग्रेस के न सिर्फ हाथ खाली रहे बल्कि दोनों सीट पर तीसरे स्थान पर संतोष करना पड़ा।
चौरासी सीट पर BAP के अनिल कुमार कटारा को 89161 वोट मिले जबकि उसके निकटतम प्रत्याशी बीजेपी के करीलाल को 64791 वोट मिले वहीँ कांग्रेस के महेश रोत को 15915 वोट ही मिले। इसी प्रकार सलूंबर के 22 राउंड की मतगणना में 21 राउंड तक आगे रहने वाली BAP के प्रत्याशी को 83143 वोट मिले जबकि बीजेपी की विजयी प्रत्याशी को शांता देवी मीणा को 84428 वोट मिले। इस प्रकार आखिरी लम्हे में मात्र 1285 वोट से BAP के हाथ से जीत फिसल गई। वहीँ कांग्रेस प्रत्याशी रेशमा मीणा को 26760 वोट मिले। BAP के राजकुमार रोत सलूंबर के नतीजे को कोर्ट में चैलेंज करने का मन बना रहे है।
अगर कांग्रेस की बात की जाए तो 2023 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को BAP ने कम से कम 8 सीट पर झटका दिया था। चौरासी, आसपुर,धरियावद में जीत दर्ज करने वाली BAP डूंगरपुर, सागवाड़ा, बागीदौरा, घाटोल में दुसरे नबंर पर रही BAP ने बाद में बागीदौरा सीट पर भी जीत हासिल कर ली थी। सलूंबर, उदयपुर ग्रामीण, झाड़ोल, गढ़ी (बांसवाड़ा), प्रतापगढ़, कुशलगढ़, बड़ी सादड़ी, पिंडवाड़ा, खेरवाड़ा जैसी सीटों पर तीसरे स्थान पर रहकर कांग्रेस का खासा नुकसान पहुँचाया था।
साल भर पहले सलूंबर सीट पर 65395 वोट लेकर दुसरे स्थान पर रहने वाली कांग्रेस 14691 मतों से बीजेपी के हाथो परास्त हुई थी, 2023 के चुनाव में 51691 वोट लेने वाली BAP के जितेश 2024 में न सिर्फ मुख्य मुकाबले में आ गए बल्कि बीजेपी को भी एक बार दिन में तारे दिखा दिए।
किसी ज़माने में मेवाड़ से 3-3 मुख्यमंत्री देने वाली कांग्रेस आपसी लड़ाई में इतनी उलझी हुई है की नेताओ को अपने गुट के अलावा कुछ दिखाई ही नहीं दे रहा है। यह कांग्रेस का हाल रहा तो मेवाड़ वागड़ से कांग्रेस का सफाया होने में अब ज़्यादा देर नहीं।
राजस्थान के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे मोहनलाल सुखाड़िया जैसे कद्दावर कांग्रेसी नेता की ज़मीन उदयपुर शहर की ही बात करे तो पिछले नगर निगम चुनाव में 20 से अधिक सीट जीतने वाली कांग्रेस एक विपक्ष का नेता तक नहीं दे पाई। जबकि नगर निगम का अगला चुनाव सर पर है। ऐसे में कांग्रेस का बोर्ड बनना तो दूर कोई पार्षद प्रत्याशी चुनाव जीत भी जाता है तो निःसंदेह वह खुद के बलबूते और मेहनत के भरोसे ही जीत सकता है, संगठन के भरोसे तो बहुत ही मुश्किल है।
यहाँ तक की अगले विधानसभा चुनाव में भी अगर BAP से गठबंधन कर कुछ सीटों पर चुनाव लड़े तो ही सफलता मिल सकती है। यही हाल रहा कांग्रेस का तो परंपरागत आदिवासी वोट तो BAP में शिफ्ट हो ही चूका है। दूसरे परंपरागत पिछड़े और अल्पसंख्यक वोट भी BAP में शिफ्ट हो सकते है।
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