उद्योग और व्यवसाय के लिये अब समय आउटसोर्सिंग और कॉन्ट्रेक्ट लेबर वर्क का


उद्योग और व्यवसाय के लिये अब समय आउटसोर्सिंग और कॉन्ट्रेक्ट लेबर वर्क का

भारत में मिश्रित अर्थव्यवस्था है। सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के अलावा बड़ी संख्या में निजी क्षेत्र में औद्योगिक इकाईयां स्थापित है। औद्योगिक निवेषको को आकर्शित करने के लिये सरकार द्वारा

 

‘‘भारत में मिश्रित अर्थव्यवस्था है। सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के अलावा बड़ी संख्या में निजी क्षेत्र में औद्योगिक इकाईयां स्थापित है। औद्योगिक निवेषको को आकर्शित करने के लिये सरकार द्वारा श्रम कानूनों में व्यापक संषोधन किये गये है।

ओपन मार्केट पॉलिसी के कारण उद्योग और व्यवसाय जगत में काफी परिवर्तन आया है। व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा में टिकने के लिये उत्पाद और सेवाओं की लागत में कमी लाना जरूरी हो गया है। इसके लिये आवष्यक है कि ज्यादा से ज्यादा काम आउटसोर्सिंग से करवाए जायें और सेवाएं ठेके पर दी जाये।’’

उपरोक्त विचार जे.के. टायर एण्ड इण्डस्ट्रीज लिमिटेड के महाप्रबंधक (एच.आर.) श्री भूपेन्द्र कौषल ने व्यक्त किये।

उदयपुर चेम्बर ऑफ कॉमर्स एण्ड इण्डस्ट्री द्वारा चेम्बर भवन के अरावली सभागार में ”मानव संसाधन एवं श्रम कानून में ें किए गए संषोधनों” पर एक परिचर्चा का आयोजन किया गया। इस परिचर्चा में जे.के. टायर एण्ड इण्डस्ट्री लिमिटेड के वरिश्ठ उपाध्यक्ष (वर्क्स) श्री एल.पी. श्रीवास्तव, महाप्रबंधक (वाणिज्य) श्री अनिल मिश्रा एवं महाप्रबध्ंाक (मानव संसाधन) श्री भूपेन्द्र कौषल विषिश्ट अतिथि थे।

जे.के. टायर एण्ड इण्डस्ट्री लि. के वरिश्ठ उपाध्यक्ष (वर्क्स) श्री एल.पी. श्रीवास्तव ने बताया कि विदेषी निवेषक भारत ें निवेष करने में यहां के श्रम कानूनों के कारण हिचकिचाते हैं जबकि चीन आदि कई देषों में कॉन्ट्रेक्ट मैन्यूफैक्चरिंग लेबर की व्यवस्था है। उन्होंने मारूति उद्योग का उदाहरण देकर बताया कि औद्योगिक अषांति के कारण प्लांट तीन हफ्ते बंद रहा जिससे उद्योग को करोड़ो रूपये का नुकसान उठाना पड़ा। महाप्रबंधक वाणिज्य श्री अनिल मिश्रा ने जे.के. टायर एण्ड इण्डस्ट्री लिमिटेड के चेन्नई प्लांट का उदाहरण देते हुए बताया कि उक्त प्लांट में अधिकारी से लेकर श्रमिक तक सभी ठेके पर अनुबन्धित है। इसके साथ ही वहां उत्पादन एवं संचालन से सम्बन्धित सभी व्यवस्थाएं ठेके पर दी गई हैं तथा यह प्लांट जे.के. टायर का सर्वाधिक प्रोफेषनल प्लांट है।

अतिथि श्री भूपेन्द्र कौषल ने यूसीसीआई के सदस्यों को जानकारी दी कि देष के श्रम कानून स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व के हैं जिस कारण यह कानून नियोजको के लिये परेषानी का कारण बने हुए है। यह कानून आज के औद्योगिक वातावरण के संदर्भ में अनुपयुक्त हो चुके है तथा इनमें अमूलचूल परिवर्तन की आवष्यकता है। इन श्रम कानूनों के अंतर्गत लेबर या कामगार की परिभाशा स्पश्ट नहीं है। श्रम अधिनियम में लेबर षब्द का कहीं उल्लेख ही नहीं है अपितु वर्कमैन षब्द प्रयोग में लिया गया है। इसके अलावा देष के राज्यों में श्रम कानूनों में एकरूपता नहीं है। अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग श्रम कानून लागू हैं।

श्री कौषल ने बताया कि मुख्यमत्री श्रीमती वसुंधरा राजे द्वारा राज्य को बीमारू राज्य की श्रेणी से निकालने तथा राज्य में औद्योगिक निवेष आकर्शित करने के लिये सराहनीय प्रयास किये गये है। राजस्थान देष का पहला वह राज्य है जहां श्रम अधिनियम में आवष्यक संषोधन कर इन्हंे काफी लचीला बनाया गया है।

प्रदेष में संषोधित श्रम कानून के चलते नियोक्ताओं को काफी राहत प्रदान की गई है। राज्य में औद्योगिक अषांति अधिनियम के तहत छंटनी (रिट्रेन्चमेन्ट) हेतु प्रावधानों में संषोधन किया गया है तथा अब 100 के बजाय 300 कर्मचारी नियोजित करने वाले उद्योग छंटनी के लिये राज्य सरकार को आवेदन कर सकते है।

फैक्ट्री एक्ट के दायरे से लघु एवं सूक्ष्म इकाईयों को बाहर रखा गया है तथा अब केवल बड़ी एवं मध्यम स्तर की औद्योगिक इकाईयों को इसमें षामिल किया गया है।

कॉन्ट्रेक्ट लेबर एक्ट का दायरा जो पूर्व में 20 या इससे अधिक कर्मचारियों तक सीमित था उसे बढ़ाकर 50 या इससे अधिक कर्मचारियों हेतु लागू किया गया है। श्रम विभाग से लाईसेंस लेना अथवा लाईसेंस का नवीनीकरण कराना अब केवल 50 या इससे अधिक कामगार नियोजित करने वाली इकाईयों के लिये ही आवष्यक होगा। औद्योगिक अषांति अधिनियम के सेक्षन 33 (सी) (2) के अंतर्गत कानूनी कार्यवाही करने के लिये समयावधि को एक वर्श से बढ़ाकर तीन वर्श किया गया है। भविश्य निधि अधिनियम की सीमा को राज्य कर्मचारी बीमा अधिनियम की सीमा के बराबर करते हुए इसे 15 हजार रूपये तक किया गया है।

परन्तु सरकार द्वारा इन श्रम कानूनों की अनुपालना में कमी पाये जाने पर नियोक्ता हेतु दण्डात्मक कार्यवाही करने के प्रावधानों को भी पारित किया गया है। ट्रेड यूनियन एक्ट 1946 में संषोधन कर यूनियन को मान्यता देने के लिये उद्योग के कुल श्रमिकों की 15 प्रतिषत सदस्यता के बजाय अब 30 प्रतिषत श्रमिकों की सदस्यता होना आवष्यक किया गया है। श्रमिकों से जुड़ी ज्यादातर व्यवस्थाओं को ऑन लाईन किया गया है जिससे भ्रश्टाचार में कमी आई है तथा पारदर्षिता बढ़ी है।

इन सुधारों के मद्देनजर राजस्थान देष का पहला ऐसा राज्य है जिसे श्रम कानूनों में समय की आवष्यकता के अनुरूप संषोधन करते हुए इन्हें लागू करने का श्रेय जाता है।

To join us on Facebook Click Here and Subscribe to UdaipurTimes Broadcast channels on   GoogleNews |  Telegram |  Signal

Tags