गुरूचरण छाबड़ा का निधन लोकतन्त्र की हत्या है


गुरूचरण छाबड़ा का निधन लोकतन्त्र की हत्या है

उदयपुर के सभी जनसंगठनों की ओर से देहली गेट पर ’’राज्य सरकार की संवदेनहीनता के प्रतिरोध’’ के लिए एवं शहीद गुरूचरण छाबड़ा के लिए श्रद्धान्जलि सभा का आयोजन किया गया।

 

गुरूचरण छाबड़ा का निधन लोकतन्त्र की हत्या है

उदयपुर के सभी जनसंगठनों की ओर से देहली गेट पर ’’राज्य सरकार की संवदेनहीनता के प्रतिरोध’’ के लिए एवं शहीद गुरूचरण छाबड़ा के लिए श्रद्धान्जलि सभा का आयोजन किया गया। जिसमें उदयपुर के सामाजिक कार्यकर्ता मीडियाकर्मी, विभिन्न जनसंगनों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। सभी संगठनों के प्रतिनिधियों ने सरकार के इन संवेदनशील व्यवहार की निन्दा की।

पी.यू.सी.एल. के उपाध्यक्ष एडवोकेट रमेश नन्दवाना ने कहा कि ’’यह हमारे इतिहास का काला दिन है कि राजस्थान सरकार की संवेदनहीनता एवं सामन्तवादी व्यवहार के कारण गाँधीवादी नेता व पूर्व विधायक गुरूचरण छाबड़ा की जान चली गई।

एपवा की सचिव सुधा चौधरी ने कहाँ कि शहीद गुरूचरण छाबड़ा का निधन सरकार की संवेदनहीनता के साथ ही लोकतन्त्र की हत्या है। राजेश सिंघवी ने कहाँ कि यह आजादी के बाद की पहली ऐसी घटना है जिस पर सरकार ने मरने के लिए छोड़ दिया।

उल्लेखनीय है कि 2 अक्टूबर से प्रदेश में शराब बन्दी और सशक्त लोकायुक्त की माँग को लेकर आमरण अनशन पर बैठे पूर्व विधायक गुरूचरण छाबड़ा का 3 नवम्बर को निधन हो गया। अनिश्चितकालीन उपवास हमारे संघर्षो के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण गाँधीवादी प्रयोग रहा है।

आमतौर पर सरकारे एक व्यक्ति की जीवन की कीमत समझ कर उसे बचाने का हर संभव प्रयास करती है। 31 दिन से जयपुर में अनशनरत छाबड़ा जी के जीवन को बचाने के लिए सरकार की कोई संवेदना नहीं जागी।

गुरूचरण छाबड़ा ने अपने अनशन में दो मागों, 1. प्रदेश में शराबबंदी एवं 2. सशक्त लोकायुक्त, जो भारतीय जनता पार्टी के चुनावी घोषणा को हिस्सा रही है, जिसको अपने अनशन के जरिये सरकार को याद दिला रहे थे। पिछले वर्ष राज्य सरकार के केबीनेट मंत्री राजेन्द्र राठौड ने लिखित में समझौता कर इन मुद्दों पर उनका अनशन तुडवाया था। एक वर्ष के बीतने तथा बार-बार उनके आग्रह करने के बाद भी सरकार ने कोई कार्यावाही नहीं की। जिसपर उन्होंने अपने लोकतान्त्रिक एवं अहिंसात्मक तरिके से अपना अनशन पुनः शुरू किया। इस पर सरकार ने एक भी बार उनसे वार्ता तक करना मुनासिब नहीं समझा।

ऐसे में गुरूचरण छाबड़ा का निधन सरकार की संवेदनहीनता के साथ ही लोकतन्त्र की हत्या है। ऐसी घटना आजादी के बाद राजस्थान में पहली बार घटित हुई है जो बहुत शर्मनाक है। हम सभी संगठन सरकार के इस रवैये की कड़े शब्दों में भर्त्सना करते हैं।

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